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जैन सिद्धांतसंग्रह |
जंबुमणिंदो वंदे णिव्वुइपतोवि जंबुवणगहणे ॥ २ ॥ पंचकल्लाणठाणंई जाणवि संजादमचलोयम्मि । मणक्यणकार्यसुद्धी सर्व्वं तिरसा मस्सामि ॥ ॥ अग्गलदेवं बंदमि वरणयरे निवंडकुंडली बंदे । पासं 'सिंवपुरि वंदमि होला गिरिसंखदेवम्मि ॥ ॥ गोमटदेवं वदमि पंचसयं धणुहदेह उच्चतं । देवा कुणति वुट्टी केसरिकुसुमाण तस्स उबरिम्मि ॥६॥ निव्वाणठांग जाणिवि अइसयठाणाणि अइसए सहिया । संजादमिचलोए सच्चे सिरसा णमंस्सामि ॥७॥ 'नो जण पढइ तियालं निव्बुइकडंपि भावसुद्धीए । भुजदि रसुरसुक्खं पच्छा सो लहइ निव्वाणं ॥ ८॥ इति अइसइखित्तकंड ।
निर्वाण कांड (भाषा)
(कविवर भैया भगवतीदासजीरचित ) दोहा - वीतराग बंद सदा, भावसहित सिरनाय ।
कहूं कांड निर्वाणकी, भाषा सुगम बनाय ॥ १ ॥ चौपाई - अष्टापदआदीसुरस्वामि । वासुपूज्य चंपापुरि नामि । नेमिनाथस्वामी गिरनार | बंदौं भावभगति उरधार ॥ ९ ॥ चरम तीर्थकर चरम शरीर । पावापुरि स्वामी महावीर ॥ शिखरसमेद जिनेसुर वीस | भावसहित वदा नगदीस || ३ || वरदतरायरु इन्द्र मुनिंद, सायरदत्त आदि गुणवृंद । नगरतारवर मुनि उठकोड़ि । बंद