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________________ जैनसिद्धांतसंग्रह। कृत कारित मोदन- करिके, क्रोधादि चतुष्टय धरिके ॥ १॥ -शत आठःशु-इम:मेदनतें, अघ कीने परछेदना . . .. : तिनकी कहुं कहलौं कहानी, तुम जानत केवलज्ञानीजा -- . विपरीत एकांत विनयके, संशय-अज्ञान कुनयके:॥ .. वश होय घोर अघकीने, वचते नहिं जात कहीन-१॥ कुगुरुनकी सेवा कीनी, केवल अदयाकार भीनी ॥ .. या विध मिथ्यातः भ्रमायो, चहुंगतिमधि-दोष उपायो.॥७॥ हिंसा पुनि झूठ-जु चोरी, परवनितासौं हगनोरी-॥ आरम्भपरिग्रहमीनो, पन-पाप जु याविधि कीनो ॥८॥ सपरस रसना माननको, हग कान विषय सेवनको ॥ . . बहु कर्म किये मनमाने, कछु न्याय अन्याय न जाने ।।९।. फल पंच उदंबर खाये, मधु मांस.मद्य चित चाये ॥ .:. नहिं अष्ट मूलगणधारे, सेये जु विसन दुखकोरः॥ १०॥ दुइ बीस अभख मिन गाये, सो भी निशदिन मुंजाये॥ . कछु भेदाभेद न पायो, ज्यों त्यों कर उदर भरायो ॥ ११॥ अनंतान जु बंधी मानो, प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानो ॥ संज्वलन चौकड़ी गुनिये, सब भेद जुषोडश सुनिये ॥१२॥ परिहास अरति-रति शोग, भय ग्लानि तिवेद संभोग ।। पनवीस जु भेद भये इम, इनके दश पाप किये हम ॥शा निद्रावश शयन करायो, सुवनेमधि.दोष लगायो॥ 'फिर भांग विषयवन धायो, नानाविध विषफल खायो ॥१४॥ आहार निहार विहारा, इनमें नहिं यतन विचारा.॥ . विन देखा घरा उठाया, विन शोषा भोजन .खाया.॥१५ .
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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