________________
• जैनसिद्धांतसंग्रह। यो विरद आप निहार स्वामी, मेंटे जामन मरनजी ॥. तुम ना पिछान्या आन मान्यां, देव विविधप्रकारंजी। या बुडिंसंती निन नजाण्या, प्रमागण्या हितकारंजी ॥१॥ भवविकटवनमें करम वैरी, ज्ञानधन मेरो हरयो । । । तब इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होय, अनिष्टगति धरता फिरयो॥ धन घड़ी यो, धन दिवस योही, धन जनम मेरो भयो। . अव भाग मेरो उदय आयो, दरश प्रभुको लख लयो ॥२॥ छबि वीतरागी नगनमुद्रा, दृष्टि नासापै धेरै। . वसुंप्रातहार्य अनन्तगुणयुत, कोटिरविछविको हौ। मिट गयो तिमिर मिथ्यात मेरो, उदय रवि आतम भयो । मो उर हरख ऐसो भयो, मनु रक चिंतामगि लयो ॥३॥ मैं हाथ जोड़ नवाय मस्तक, वीनऊं तुव चरनजी। सर्वोत्कृष्ट त्रिलोकपति जिन, सुनो तारन तरननी ॥ नाचू नहीं सुरवास पुनि, नरराज परिजन साथ नी । 'बुध' जाचहू तुव भक्ति भवभव, दौनिये शिवनाथनी ॥४॥ __इस प्रकार एक या दोनों स्तुति पढ़कर पुनः साष्टांग नमस्कार करना चाहिये । तपश्चात् नीचे लिखा श्लोक पढ़कर गंधोदक. मस्तकपर तथा हृदयादि उत्तम अंगोंमें भी लगाना चाहिये ।
निर्मल निर्मलीकरणं पवित्रं पापनाशनम् । ।
जिनगन्धोदकं वन्दे अष्टकर्मविनाशकम् ॥१॥ .. : यदि आशिंका लेनी हो तो यह दोहा पढ़कर लेना चाहिये ।। दोहा-श्रीनिनवरकी आशिका, लीने शीसं चढ़ाय । .