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नैनसिद्धांतसंग्रह । । [४१ इस प्रकार.चार प्रकारके द्रव्योमेसेजो द्रव्य हो, उसी द्रव्यका श्लोक व मंत्र पढ़कर वह द्रव्य चढ़ाना चाहिये । तत्पश्चात् नीचे लिखी दोनों स्तुतियां अथवा दोनों से कोई एक स्तुति अवश्य.. पढ़नी चाहिये।
दौलतराम कृत स्तुति ॥ दोहा-सकल-ज्ञेय-ज्ञायक तदपि, निजानंदरसलीन । सो निनेन्द्र जयवंत नित, अरिरजरहसविहीन ॥
पडरिछन्द । जय वीतराग विज्ञानपूर, जय मोहतिमिरको हरनसूर ॥ जय ज्ञान अनंतानंतधार, हगसुखवीरजमंडित अपार ॥१!! जय परमशांतिमुद्रासमेत, भविमनको निनअनुभूतिहत ॥ भवि भागनवश जोगे वशाय, तुम धुनि है सुनि विभ्रम नशाय॥२॥ तुम गुणचिंतत निजपरविवेक, प्रगटे, विघटें आपद अनेक ॥ तुम जगभूषण दूषणवियुक्त, सब महिमायुक्त विकल्पमुक्त ॥३॥ अविरुद्ध शुद्ध चेतनस्वरूप, परमात्मपरमपावन अनूप ॥ शुभ अंशुभविभाव अभाव कीन,स्वाभाविक परिणतिमय अछीन॥४॥ अष्टादशदोषविमुक्त धीर, सुचतुष्टयमय राजत गंभीर ।। मुनि गणधरादि सेवत महंत, नवकेवललब्धिरमा घरंत ॥५॥
तुम शासन सेय अमेय जीव, शिव गये जाहिं जैहैं सदीव ।। . भवसागरमें दुख छारवारि, तारनको और न आप टारि ॥६॥
यह लखि.निज दुखगदहरणकाज, तुमही निमित्तकारण इलान ।। नान, तात मैं शरण आय, उचरूं निज दुख जो चिरलहाय॥७॥