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जैन सिद्धांतसंग्रह ।
. सुन्दरी छंद । :
प्रथम आचारांग सु जानिये । द्वितिय सुत्रकृतांग - वखानिये || तीसरा स्थानांग सो अंग जू । सूर्य समवायांग अभंग जू ॥ २ ॥ पंचमो व्याख्याप्रज्ञप्ति जू | उठ्ठम ज्ञातृध्या गुण युक्त ज़ू ॥ उपासकाध्यन अंग सो सप्तमो । अंग अंतकृतांग सु मष्टमो ॥३॥ दोहा - नवम अनुत्तर दशम पुन, प्रश्नव्याकरण जान |
विपाकसूत्र सु ग्यारमो, धारें गुरु गण खान ॥ ४ ॥ ॐ ह्रीं एकादशांगपठनयुक्ताय उपाध्यायपरमेष्ठिने अर्ध नि० ॥ गीता छंद-जब चार दश पूरव प्रथम उत्पाद नाम सु मानिये । माग्रायणी बीर्यानुवाद सु, अस्तिनास्ति बखानिये ॥ ज्ञानःपवाद सु पंचमो, कर्मपवाद छट्टों कहो । सत्यमवाद सु संप्तमो, आत्मपवाद वसु कहो ॥ ९ ॥ पुनः नाम प्रत्याख्यान अरु, विद्यानुवाद प्रमाणिये । कल्याणवाद महन्त पूरव, क्रियाविशाल बखानिये ॥ वरलोकविंद मिलाय चौदह, सार ये पूरव कहे ।
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ते घरें श्रीवाय तिनके, पूंमते शिवमग कहे ॥ ९ ॥ ॐ ह्रीं चतुर्दश पूर्व पठनपाठन संलंग्नाथ उपाध्याय परमेष्ठिने अर्ध नि० ॥ दोहा - ऐसे ग्यारह अंग अरु, चौदह पूरब मान ।
उपाध्याय मानें सुघी, सो पूजों रुचि ठान ॥ ७ ॥ श्री साधुगुण पूजा ।
दोहा - साधु तने मठवीसगुणं, सो घारें सुनिराज । मतीचार कागे नहीं, साधें मातम कान ॥ १ ॥
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