________________
NRNA
जैनसिद्धांतसंग्रह । [.४४३
गीता छंद। नक सरस गंग संगको, शुचि रंग सुन्दर लाइये । कंचन कटोरी माहि भर, जिनराम चरन चढ़ाहये । ये पंच इष्ट अनिष्ट हाता, दृष्टि लगत सुहावने । मैं जनों आनंदकन्द, लखकर, दन्द फ द मिटवने ॥ ॐ ही पंचपरमेष्ठिम्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ लै गारि मलयागिरि सु चन्दन, मति सुगंध मिलायके । मैं हर्षकर जिनचरण चरचों, गाय साज बजायके ये पंच०॥ ॐ ह्रीं श्रीपंचपरमेष्ठिम्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ ले सरम तंदुल खंड विनसित, सालिके वर मानिये । मल घोय थार सँजोय पूनों, मखयपदको ठानिये ॥०॥ ॐ ह्रीं श्रीपंचपामेष्ठिम्योऽसतानिपामीति स्वाहा ॥ ३ ॥ वेला चमेली केवड़ा, मचकुन्द सुमन सुहावने । ले केतकी कमलादि अर्ची कामवान नसावने ॥ ये० ॥
ॐ ह्रीं श्रीपंचपरमेष्ठिम्यः पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥४॥ • लाडू पुभा पेड़ा रु मिश्री, खोपरा खाना बने।
घर हेमथाक मझार पुनों, क्षुधारोग निवारने ॥ ये॥ ॐ ह्रीं श्रीपंचपरमेष्ठिम्यो नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥५॥ ले दीप मणिमय ज्योति जगमग, होत मधिक प्रकाशनी। कर आरती गुण गाय नाचों, मोह तिमिर विनाशनी ये॥ ॐ ह्रीं श्रीपंचपरमेष्ठिम्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ कर चूर अगर कपूर ले, भरपूर जास सुवासकी I . खेळ सु अगन मझार होकरके सु सन्मुख नासकी नाये॥