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________________ - ४२२] जैनसिद्धांतसंग्रह। (e) द आरतियें। प्रथम आरती। यह विधि मंगल भारती कीने । पञ्च परमपद भनि मुख लीने ।। टेक ॥ प्रथम भारती श्रीमिनराजा । भवनळ पार उतार निहाना १॥ दुनी भारती सिद्धन केरी। मुमरण करत मिटै भव फेरी ॥२॥ तीनी आरती सुर मुनिन्दा । जन्म मरण दुःख दूर करिन्दा ॥३ बौधी भारती श्री उबवाया। दर्शन देखत पाप पलायां ॥१॥ पांचमी भारती साधु तम्हारी ! कुमति विनाशन शिव अधिकारी ॥५॥ छट्ठी ग्यारहप्रतिमा धारी। श्रावक बन्दों मानन्दकारी ॥१॥ सातमी भारती श्री जिनवाणी ! चानव स्वर्ग मुक्त मुख दानी। द्वितीय आरती। ... . भारती श्री जिनराम तुम्हारी । कर्मदकन सन्तन हितकारी ॥ टेक-सुर नर मसुर करत तव सेवा तुम ही सब देवनके देवा ॥ १ ॥ पंचमहाव्रत दुबर पारे । 'राग दोष परिणाम विडारे ॥ १॥ भव भयभीत शरण जे आये| ते परमारथ पन्थ लगाये ॥२॥ नो तुम नाम जपै मन माहिं। जन्म मरण भय ताको नाहि ॥ ४॥ समोशरण सम्पुरण सोमा। नीते क्रोष मान मद कोमा ॥५॥ तुम गुण हम कैसे कर गा। गणपर कहत पार नहिं पाई ॥ ६॥ करुणासागर करुणा की । धानत सेवकको सुख दीजै ॥ ७॥ . तीसरी आरती। . भारती कीने श्रीमुनिराजकी अषम उधारण मातमकामकी ।
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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