________________
wwwwww
जैन सिद्धांतसंग्रह। [४१९: ... [७] बारहमाना।
[रत्नचंद्रजीकृत।
.. सवैया ३१॥ भोग उपभोग जे कहे हैं .संसाररूप रमा धन पुत्र. भो . कलत्र मादि जानिये ॥ ज्यूही नक बुदबुद प्रत्यक्ष है लखाव तनु. विधुतचमत्कार थिर न रहानिये । त्यूं ही नग.अथिर विलासको मसार मान. थिर नहीं दीसे सो अनादि अनुमानिये ॥ यह नो विचारे सो मनित्य अनुपेक्षा कहे प्रथम ही भेद मिनरान नो वखानिये.॥ १॥ निर्जन भरण्य माहि आहे मृग सिंह शरण न दीसे मशरण ताहि कहिये ॥ हरिहरादि चक्राति पद त्यों मथिर.. गिनो जन्ममरण-सो अनादि ही ते लहिये ।। याहिको विचारियो मसार संसार :मान एक भवलंब जिनधर्म ताहि गहिये । दृढ़ हिये. धार निन भात्मको कर विचार तनके विकार सब निश्चल हो रहिये ॥ १॥ कर्म काण्ड दाही थकी मात्मा भ्रमणकरे नट जैसो नाटक. अनन्तकाक करे है। पिता हुने पुत्र होय जनक. होय मुत..
हू ते, स्वामी हू ते दास भृत्य स्वामी पद धरे है।माता हू ते,निया.. , होय कामिनी ते माय होय भवन माहि.नीव यूंही संसरे है ॥२॥ मैंह नो एकाकी सदा देखिये अनंत काल जन्म मृत्यु बहु दुःख सहो है। रोगनासो है एकैपाप फल मुंजे घनो एकै शोकवन्तको उदुतीनाहिं सहो है। स्वनन नतात.मातःसाथी नहिं कोय यह रलत्रय साथि निन ताहि नहिं गहो है। एकै यह भात्मघ्यावे, एक तपसा