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जैनसिद्धांतसंग्रह । [.३२१ चौदह राजू, जात चली परमानी है । परस तह सर्वपदारथको, क्रमसौं यह भेद विधाना है || नहि अंश समयका होत तहाँ, यह गतिकी शकि बखानी है | हो. ॥१॥ गुन द्रव्यानक आधार रहें, गुन गुन आर न रान ह । न किसी गुणसों गुण
और मिलें, यह और विलच्छन तान ह । ध्रुव व उनपाद सुभाव लिये, तिरकाल अवाधित छान है । पट हानिरु वृद्धि सदीक करै, जिनवन सुनै भ्रम भान है ।। हो० ॥१०॥ निम सागरबीच कलोल उठी सो सागरमांहि समानो है। परनै करि सर्व पदार्थ में तिमि हानिरु वृद्धि उठानी है ।। जब शुद्ध दरबार दृष्टि धरै तब • भेदविका नशानी है । नयन्यासनतें बहुं भेद संतो परमान लिये परमांनी है | हो। ॥ ११॥ नितने निजवेनके मारग हैं, तितने नयभेद विमाखा है। एकांतकी पच्छ, मिथ्यात वही, अनेकांत गहें सुखसाखा है || परमागम है सवंग पदारथ, नय इक्रदेशी भाषा है । यह नय परमान गिनागम साधित, सिद्ध करे अभिलाषा है.॥ हो..॥१२॥ चिन्मरतके परदेशपती, गुन हंसु अनंत अनंतानी । न.मिल गुन आपुसमें कबई सत्ता निन भिन्न धरता भी ॥ सूचा चिनमूरतकी सबमें सब काल सदा वरतंता · नी। यह.वस्तु सुभाव जथारथको, न्यि सम्यकवंत लखंता जी।
हो ॥१॥ सविरोध-विरोधविवर्जित धर्म, घर सब वस्तु विरान है। बह भाव. तहांसु अमाव वसे इन आदि अनंत सु छान है।
निरपेक्षित सो न सधै कबई, सापेक्षा सिद्ध समान है। यह .. अनेकांतसों कथन मथन करी, स्यादवादः धुनि गाने है ।। हो.
॥१४॥.जिस काल कथंचित अस्ति कही, तिस काल कथंचित