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३४८] जनासद्धांतसंग्रह।
षट्पः । तब विलंब नहिं कियो, दियो नमिको रनताचल | तब विलंब नहिं कियो. मेघवाहन लंकाथल || तब विलंब नहिं कियो शेठ सुत दारिद भने । तब विलंब नहिं कियो, नाग जुन सुरपद रंजे ॥ इमि चूरि भूरि दुख भक्तके, सुख पूरे शिवतिय रमन । प्रभु मोर दुःखनाशनवि, अब विलंबकारन कवन ॥३॥ तब विलंब नहिं कियो, सिया पावक नल कीन्हौं । तब विलंब नहि कियो, चंदना शृंखल छीन्हौं । तब विलंब नहिं कियो, चीर दुपदीको बाढ्यौ । तब विलंब नहिं कियो, सुलोचन गंगा काट्यौ । इमि चूरि भूरि दुख भक्तके, सुख पूर शिवतियरवन । प्रमु मोर दुःख नाशनविर्षे अब विलंब कारन कवन || ४ || तब विलंब नहि कियो सांप किय कुसुम सु माला । तब विलंब नहिं कियो, उर्मिला सुरथ निकाला। तब विलंब नहिं कियो, शीलबल फाटक खुल्ले । तब विलंब नहिं कियो, अंजना वन मन फुल्ले ॥ चूरि भूरि दुख मक्तके. सुख पूरे शिवतियरवन । प्रभु भोर दुःखनाशनविष, अव विलंब कारन कवन ॥ ९ ॥ तब विलंब नहिं कियों, शेठ सिंहासन दीन्हौं । तब विलंब नाह कियो, सिंधु श्रीपाल कदीन्हौं। तब विल्ब नहिं कियो, प्रतिज्ञा वज्रर्ण पल । तब विलंब नहिं कियो, सुधन्ना काढ़ि वापि थल ॥ इम चूरि भूरि दुख भक्तके, सुख पूरे शिवतियरवन । प्रमु मोर दुःखनाशनविर्षे, अब विलंब कारन कवन ॥ ६॥ तंब विलंब नहिं कियो, कंस भय त्रिजुग उचारे । तब विलंब नहिं कियो, कृष्णसुत शिला उतारे। तब विलंब नहिं कियो खड्ग मुनिरान बचायो । तब विलंब नहिं कियो,