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१४६ 1. जैनसिद्धांतसंग्रह। ॥ हो० ॥१२॥ नब सेठ सुषन्नाजीको वापीमें गिराया । ऊपरसे दुष्ट था उसे वह मारने आया । उस वक्त तुम्हें सेठने दिल अपनेमें ध्याया । तत्काल ही जनालसे तब उसको बचाया हो. ॥१३॥ एक सेठके घरमें किया दारिद्रने डेरा । मोननका ठिकाना भी न था सांझ सवेरा । उस वक्त तुम्हें सेठने जब ध्यानमें घेरा। घर उसकेमें तब कर दिया लक्ष्मीका बसेरा हो.॥ १॥ बलि वादमें मुनिराजसों नवं पार न पाया । तब रातको तलवार ले शठ मारने आया । मुनिराजने निमध्यानमें मन लीन लगाया। उस वक्त हो प्रत्यक्ष तहां देव बचाया । हो ॥१५॥ जब रामने हनुमंतको गढ़ लक पठायो । सीताकी खबर लेनेको सह सैन्य सिधाया । मग बीच दो मुनिराजकी लख मागमें काया । झट वार मुसलधारसे उपसर्ग बुझाया | हो. ॥ ६॥ जिननाथहीको माथ निवाता था उदारा । रेमें पड़ा था वह कुलिशकरण बिचारा । उस वक्त तुम्हें प्रेमसे संकटमें उचारा । रघुवीरने सब पौर तहां तुरत निवारा ॥ हो ॥१७. रणपाल कुँवरके पड़ी थी पांवमें बेरी । उस वक तुम्हें ध्यानमें ध्याया था सोरी ॥ तत्काल ही सुकुमारकी सब झड़ पड़ी बैरी । तुम रायकुंवरकी सभी दुखदन्द निवरी ॥ हो. ॥ १८ ॥ नब सेठके नन्दनको डसा नाग जु कारा । उस वक्त तुम्हें पारमें घरधीर पुकारा || ततकाल ही उस बालका विष मूर उतारा । वह भाग उठा सोके मानों सेन सकारा ॥ हो ॥१९॥ मुनि मानतुङ्गको दई मब भूपने पीरा ॥ तालेमें किया बन्द भरी लोह जैनीरा ।। मुनि ईशने आदीशकी स्तुति का है गंभीरा । चक्रेश्वरी तब आनके झट् दुरकी पीरा ॥