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जैनसिद्धांतसंग्रह।
[२५, वच तन कृत कारित अनुमौदै नही, नवविध मैथुन दिवस माहि ' जो वर्जही । अरु चतुर्विध आहार निशामाहीं तने, रात्रिमुक्ति परित्याग प्रतिमा सो सजै ।। ६॥
ब्रह्मचर्य प्रतिमा स्वरूप-(चौपाई) पूर्व उक्त मैथुन नव भेद, सर्व प्रकार तमै निरखेद, नारि कथादिक भी परिहरे, ब्रह्मचर्य प्रतिमा सो घरे ।। ७॥
आरंभ त्याग प्रतिमा स्वरूप-(चौपाई) जो कछु अल्प बहुत अघ काज, ग्रह संबंधी सो सब त्याज । निरारम्भ है वृषरत रहै, सो जिय अष्टम प्रतिमा वहै ॥ ८॥ .
परिग्रहत्याग प्रतिमा स्वरूप-(चौपाई) वस्त्र मात्र रख परिग्रह अन्य, त्याग करै जो व्रतसंपन्न । तामें पुन मूर्छा परहरै, नवमी प्रतिमा सो भवि-धरै ॥९॥
अनुमतित्याग प्रतिमा स्वरूप-(चौपाई) जो प्रमाण अघमय उपदेश देय नहीं परकोलवलेश । अरु तमु अनुमोदन भी तजै, सोही दशमी प्रतिमा सजै ॥१०॥
उद्दिष्टत्याग प्रतिमा स्वरूप-(चौपाई) ग्यारम थान भेद हैं दोय, इक छुल्लक इक ऐळक सोय। खंडवस्त्र घर प्रथम सुजान, युतकोपीन हि दुतिय पिछान । १.१॥
ए गृह त्याग मुनिन ढिंग रहँ, वा मठ, मंदिरमें निवसह । उतर उदंड उचित आहार, करहिं शुद्ध मंत्रायन बार ॥ दोहा । इम सब प्रतिमा एकदश, दौल देशव्रत यानं । ग्रहै अनुक्रम मूल सह 'पाले भवि सुखदान