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जैन सिद्धांत संग्रह ।
लों घटायें । रात्रिमुक्त परिहरै ब्रह्मचर्य नित घरे. आरम्भको त्याग करें मन वच कायके । परिग्रह कान टार, अघ अनुमति छारें स्वनिमित त टारें आतम लोलायकै । सब एकादश येह प्रतिमा जु शर्मा गह, धारें देश व्रती हर्ष उर वढायकै ।
दर्शन प्रतिमा स्वरूप - अष्ट मूलगुण संग्रह करे, व्यसन अमक्ष्य सबै परिहरै । युत अष्टांग शुद्ध सम्यक्त, घराह प्रतिज्ञा दर्शन रक्त ॥ १ ॥
व्रत प्रतिमा स्वरूप- अणुव्रतपन अनिचार विहीन, धारहिं जो पुन गुणत्रत तीन, चौ शिक्षात्रत संजुत सोय; व्रत प्रतिमा घर श्रावक होय ॥ २ ।
सामायिक प्रतिमा स्वरूप- ( गीतका छद) सब नीवमें सममाच घर शुभ भावना संयममहीं, दुरव्यान आरत रौद्र तनकर त्रिविध काल प्रमाणहीं । परमेष्ठिपन जिन वचन जिन वृष बिंब जिन जिग्रनह तनी, वंदन त्रिकाल करहि सुजानहु भव्य सामायिक धनी ॥ २ ॥
प्रोषधं प्रतिमा स्वरूप-पद्धरी छंद वर मध्यम जघन त्रिविध घरेय, प्रोषध विधि युत निजवल प्रमेय: प्रति मास, चार पर्वी मंझार, नानहु सो प्रोषध नियम धार ॥ १ ॥
सचित्तत्याग प्रतिमा स्वरूप- ( चौपाई ) जो परिहरे सचित सब चीज, पत्र प्रवाळ कंदं फलबीन । अरु अपासुक जल भी सोय, सचित त्याग प्रतिमा घर होय ॥ ५ ॥
रात्रिभुक्तत्याग प्रतिमा स्वरूप- (अडिल छंद) मन