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जैनसिद्धांतसंग्रह। उमड़ रहे वार । वनमोर पपीहा कोयल बोलें दादुर ॥ मति मच्छर मिन ५ करें, सर्व फुर, कुंछो थलचर । बहु सिंह स्याल गम घूमें बनके अंदर ।। मुनिरान ध्यानगुन पुरे, तब काटें कम अंकूरे। तन लिपटत कानखजूरे, मधुमच्छि ततइये गरे । चिर्टियोंने बिल तनारे, मापानि खरे हाथ लटकाके | जिन अथिर लखा संसार बसे वन जाके ॥६॥ पाश्विनमें वर्षा गई, समय नहि रही दशहरा पाया। नहीं रही वृष्टि अरु कागदेव कहराया || कामी नर करें किलोल बनाव ढोल, करें मन माया धन्य साधु जिन भातम. ध्यान लगाया । वयाम योगमै भीने, पुनि अष्टकम छय कीने । उपदेश सबनको दीने, भविननको नित्य नवीने ॥ हैं धन्य धन्य मुनिरान, ज्ञानके तान, नमू शिरनाके । जिन मथिर लखा संसार बसे बन जाके ॥णा कातिकमे आया शीत भई विपरीति अधिक शरदाई । संसारी खेलें जुवा कर्म दुखदाई ॥ नग नर नारीका मेल, मिथुन मुख फेल करें मन भाई | शीतल अनु कामी मनको है मुखदाई ॥ नव कामी काम कमा । मुनिराज ध्यान शुभ घ्यावें । सरवर तट ध्यान लगाई, सो मोक्ष भवन सुख पावे ॥ मुनि महिमा अपरम्पार, न पावै पार, कोई नर गाके । निन' अथिर लखा संसार बसे बन जाके ॥ ८॥ मगहनमें टपके शीत यही नगरीति सेन मन भावै । अति शीतल चले समीर देह थरावै ॥ श्रृंगार करे कामिनी रूपरस ठनी साम्हने भावै । उस समय कुमति बश सबका मन ललचावै ।। योगोश्वा ध्यान घरे हैं, सरिताके निकट खरे हैं। जहां मोले मषिक पर हैं, मुनि कर्मका नाश करें हैं। जब पड़े बर्फ घनघोर, करें नहीं शोर नयी