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जनातभा
जैनांसद्धांतसंग्रह। ॐ ही वैशाखशुरुदशम्यां ज्ञानकल्याणप्राप्ताय श्रीमहावीर- . जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥
कातिक श्याम अमावस शिवतिय, पावापुरते वरना । गनफनिवृंद जबै तित बहु विधि, मैं पूजू मयहरना । मोहि राखौ ॥९
ॐ ही कार्तिककृष्णामावास्यायांमोक्षमङ्गलमंडिताय श्रीमहावरिजिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५ ॥
अथ जयमाला। गन्धर असनियर चक्रपर, हरघर गदाधर वरवदा। अरु चापधर विद्यानुवर, तिरसूलधर सेवहिं सदा । दुखहरन आनंदमरन तारन, तरन चरन रसाल हैं।
सुकुमाल गुन मणिमाल उन्नत,मालकी जयमाल है ॥ १॥ पत्ता-जय त्रिशलानंदन हरिलतवंदन, नगदानंदनचंद वरं ।
___ भवतापनिकंदन तनमनवंदन, रहितसपंदन नयन घरं ॥२॥ तोटक-नय केवलमानुकलासदनं । मविकोकविकाशन कंजवनं ॥ जगजीत महरिपु मोहहरं । रजज्ञानहगांवरचूरकरं ॥ १ ॥ गर्मादिक मंगल मंडित हो । दुख दारिदको नित खंडित हो। . नगमाहि तुमी सत पंडित हो। तुम हीभक्मावविहंडित हो ॥२॥ हरिवंश सरोजनकों रवि हो । बलवंत महंत तुमी कवि हो। लहि केवल धर्मप्रकाश कियो । अवलौं सोई मारग राजति यौ ॥॥ पुनि आपतने गुणमाहिं सही । सुर मग्न हैं जितने सब ही।
विनकी वनिता गुण गावत हैं। लय ताननिसौं मनमाबत हैं ॥४॥ ': पुनि नाचत रंग अनेक भरी । तुव भक्तिविष पग एम घरी। ... ::., अननं झननं शननं शननं । सुर लेन वहां तननं:तननं ॥ ५ ॥..