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जैन सिद्धांतसंग्रह ।
अडिल्ल - कोड़ि बहत्तर मप्त सैकड़ा जानिये । मुनिवर मुक्ति गये तहांसे सुपमाणिये ॥ पूजों निनके चरण सु मनवचकायके । वसुविधि द्रव्य मिलाव सुगाय चनायके ॥ पूर्णाधं ॥
जयमाला ।
दोहा - सिद्धक्षेत्र नग उच्च थक, सव जीवन सुखदाय । कहों ताम जयमालका, सुनते पाप नशाय ॥ ९ ॥ गिरिनारि सुगिरि उन्नत वखान || सौराष्ट्र देशके मध्य सार || २ ||
जयं सिद्धक्षेत्र तीरथ महान ।
वहां
झूनागढ़ है नगर सार । जत्र झूनागढ़से चले सोई । समभूमि कोस वर तीन होई ॥ दरवाजेसे चक कोस श्राघ । इक नदी बहुत है जक भगाध ॥ ३ ॥ पर्वत उत्तर दक्षिण सुदोय । मंघि वहत नदी उज्ज्वक सु तोय || -ता नदी मध्य कई कुन्ड जान । दोनों तट मंदिर बने मान ॥ ४ ॥ वहां वैरागी वैष्णव रहाय । भिक्षा कारण तीरथ करांय || इक कोस तहां यह मचो ख्याक | आगे इक वरनदी नाल ॥५॥ वहां श्रावकजन करते स्नान । घो द्रव्य चळत मागे सुजान ॥ फिर मृगीकुंड इक नाम जान । तहां वैरागिनके बने थान ॥ ६ ॥ वैष्णव तीरथ जहाँ रचो सोई । विष्णुः पूजत आनंद होई ॥ - मागे चल डेढ़ झु कोश जाव । फिर छोटे पर्वतको चढ़ाव ॥ ७ ॥ तहां तीन कुंड सोहैं महान | श्रीजिनके युग मंदिर बखान ||८|| मंदिर "दिगम्बरके दुजान । श्वेताम्बरके बहुते प्रमाण ॥ जहां बनी धर्मशाला सु जोगं । जलकुंड तहां निर्मळ सुतोय ॥९॥
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