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जैनसिद्धांतसंग्रह |
हों तुम्हारे चरणा प्रभु देहु हमें शिवकी ठकुराई ॥ मपती० ॥
फलं ॥ ८ ॥
ध्याई । वसुकर्म को दु:खदाई ॥ नेमपती • • ॥ वर्ष ॥ ९ ॥
केतु
का
पूजत हों तुम्हरे चाणा हरिये
दोहा - पूजत हाँ बतु द्रव्य ले, मिद्धक्षेत्र सुन्दाय | निमहित हेतु सुहावनो, पूरण अर्ध चढ़ाय ॥ पूर्णच॥१०॥ पंच कल्याणका |
कार्तिक सुडिकी हठि जानो । दर्भान दिन मानो ॥ टव इन्द्र ने उस धानी | इस पृष्ठ हम हर्षानी || ॐ ह्रीं कार्तिक सुदि हठ गर्भमंगल वं ॥ १ ॥ श्रावण हृदि छठ सुखकारी । व जन्ममहोत्मक धारी ॥ सुरराजगिरि अन्हवाई | हम पूजत इन सुख पाईं ॥
ॐ ह्रीं श्रावण सुदी इठ जन्ममंगलधारणेम्यो | अर्ध ॥ १ ॥ सित साधनही हठि प्यारी । वादिन प्रभु दिक्षाधारी ॥ तप घोर चीर तहां करना । हम पूजत तिनके चरणा ॥
ॐ ह्रीं सावन सुदि छठ दिक्षाधारणन्यो | अर्ध ॥ १ ॥ एकम सुदि अश्विन माता । तच देवज्ञान प्रकाशा ॥ हरि समवशरण तब कीना । हम पूजत इत सुख लीना ॥ ॐ ह्रीं अनि तुदि एकम केवलकल्याणप्राप्ताय ॥ अर्ष ॥ ४ ॥ सिठ अष्टमि मास भाषाढ़ा । तब योग प्रभूने डांडा || मिन ई मोक्ष ठकुराई । इठ पृमत चरणा भाई ॥
ॐ ह्रीं भाषाढ़ सुदी मष्टमी मोक्षमकप्राप्ताय ॥ भवं ॥ ५ ॥