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जनसिद्धांत संग्रह |
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ॐ ह्रीं त्रयोदशविधंसम्यकचारित्राय नलं ॥ १ ॥ जल केशर घनसार, ताप हरै शीतल करे । सम्यकचा ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यकचारित्राय चंदनं निर्वपा• ॥ २ ॥ अक्षत अनुप निहार, दारिंद नाशै सुख करें । सम्यकचा ॥३॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यक्रचारित्राय अक्षतान् निवपा० ॥ ६ ॥ पुहपसुवास उदार, खेद हर मन शुचि करै । सम्यकचा ० ॥४॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यकचारित्राय पुष्पं निर्वपा स्वाहा ॥४॥ नेवन विविधप्रकार, छुषा हरें थिरता करै । सम्यक० । ५ ॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यकचारित्राय नैवेद्यं निर्वपा • स्वाहां ॥१॥ -दापजोति तमहार, घटपट प्रकाशै महां । सम्यकचा• ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशविधिसम्यकचारित्राय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥ धूप प्राण सुखकार, रोग विधन जड़ता हरै । सम्यकचा० ॥ ७ ॥ ॐ ह्रीं त्रयोदश सम्यकचारित्राय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥ श्रीफलआदि विथार, निर्हेचे सुरशिवफल करे । सम्यक• ॥ ८ ॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशविधसम्यकचारित्राय फलं निर्वपा० स्वाहा । ८ १ जल गंधाक्षत चारु, दीप धूप फल फूल चरु सम्यक• ॥ ९ ॥ ॐ ह्रीं त्रयोदशविषसम्यकचारित्राय अर्घ्यं निर्वपा • स्वाहा ॥ ९ ॥
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अथ जयमाला ।
दोहा - आप आप थिर नियत नय, तपसंजम व्योहार । स्वपर दया दोनो लिये, तेरहविष दुखहार ॥ १ ॥ चोपाई मिश्रित गीता छंद ।
सम्यकचारित रतन सँभालो । पांच पाप तजि व्रत पालो । पंचसमिति त्रय गुपति गहजै । नरमव सफल करहु तन होने ॥