________________
२२४] बैनसिद्धांतसंग्रह। प्रवचनमगति कर जो ज्ञाता । लहै ज्ञान परमानंददाता ॥ . पटुमावश्य काल जो साथै । सो ही रतनत्रय भाराधे ॥ ८॥ घरमप्रभाव करें जे ज्ञानी । तिन शिवमारग रीति पिछानी। वत्सलमंग सदा जो ज्यादै । सो तीर्थपदवी पावे ॥९॥ दोहा-एही सोलहभावना, सहित धेरै व्रत मोय ।
देवइन्द्रनवंद्यपद, 'पानत' शिवपद होय ॥१०॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्यः पूर्णाध्य ।
(अध्यके बाद विर्मन भी करना चाहिये)
(१२) दशलक्षणधर्मपूजा। अडिल्ल-उत्तम छिमा मारंदव भारमवमाव हैं।
शौच सत्य सनम तप त्याग उपाव हैं। माकिंचन ब्रह्मचर्य धाम दश सार हैं।
चहुंगतिदुखत काढ़ि मुक्तिकरता हैं ॥१॥ ॐ हीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म ! वापता अवतर ! संवौषट् । ॐ ह्री उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म ! अत्र तिष्ठ विष्ठ । 3.1 - ॐही उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म | मन मम सनिहितो भव भव । वषट् । सोरठा-हेमाचलकी धार, मुनिचित सम शीतल मुरम।
भव माताप निवार, दसकच्छन पूनों सदा ॥१॥
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय नलं निवपामि ॥१॥ चन्दन केशर गार, होय सुवास ों दिशा । भवमा० ॥२॥
ॐ ही उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय चंदनं निर्वपामि ||२||