________________
१८२]
नैनसिद्धांतसंह मुक्ति श्रीवनिताकरोदकमिदं पुण्याङ्करोत्पादकम् । नागेन्द्रदिशेन्द्रचक्रपदवीराज्याभिषेकोदकम् ॥ . सम्यग्ज्ञानचरित्रदर्शनकता संवृद्धिसम्पादकम् ।
कीतिश्रीमयसाधकं तव निन ! स्नानस्य गंधोदकम् ॥ ( इस श्लोकको पढ़कर अपने अङ्गमें गंधोदक लगाना चाहिये।.)
इति श्री मधुरमिपेक्रविधिः समाप्तः ।।
(२) विनयपाठ। इहि विधि ठाडो होयके प्रथम पढ़े भो पाठ ।। धन्य जिनेश्वर देव तुम नाशे कर्म जु पाठ॥१॥ अनंत चतुष्टयके धनी तुमही हो शिरतान॥ मुक्तिवधूके कंथ तुम तीन भुवनके राम ॥२॥ तिहुँमगकी पीडाहरण भवदधि शोषनहार ॥ ज्ञायक हो तुम विश्वके शिवमुखके करतार ॥३॥ हरता अघ-अधियारके करता धर्मपकाश ॥ थिरता पद दातार हो घरता निजगुण राम || || ' धर्मामृत र नलषसों ज्ञान भानु तुम रूप ॥ तुमरे चरण-सरोनको नाबत तिहु मगभूप ॥ ५ ॥ मैं बदौं जिनदेवको कर अति निरमल भाव ॥ -. . कर्म बंधके छेदने और न कोई उपाय ॥ ६॥ भविननको मविकूपते तुमही कादनहार । दीनदयाल अनावपति मातम गुण भंडार ॥ ....