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जैनसिद्धांतसंग्रह . [ १८१ सम्पूर्णशारदर्शशाङ्कमरीचिनालस्यन्दैरिवात्मयशसामिव सुपवाहः। सौरनिनाः शुचितरैरमिषिच्यमाणाः संपादयतु मम चित्तसमीहितानिया
(इस श्लोकको पढ़कर दुग्धके कलशसे अभिषेक करना चाहिये।) दुग्धाषिवीचिपयसाचितफेनराशिंपांडुत्वकांतिमवधारयतामतीव । दनां गता निनपते प्रतिमा सुधारा सम्पद्यतां सपदि वांछितसिदये वा
(इस श्लोकको पढ़कर दधिके कलशसे अभिषेक करना चाहिये।) भक्या बलाटतऽदेशनिवेशितोच इश्यता मावराSEरमयनाथः। तत्कालपीलितमहेक्षुरसस्यधारा सघः पुनातु जिनबिम्ब गव युष्मान् ।। (इस श्लोकको पढ़कर इक्षुरसके कलशसे अभिषेक करना चाहिये।) संस्नापितस्य घृतदुग्पदघोरवाहैः सर्वामिरौषधिमिरईतमुज्वामिः । उद्धर्तितस्य विदधाम्यभिषेकमेला कालेयकुङ्कुमरसोत्कटवारिपुरैः॥ (इस श्लोकको पढ़कर सर्वोषधीके कलशसे अभिषेक करना चाहिये।) द्रव्यैरनस्पधनसारचतुः समाचैरामोदवासितसमस्तदिगन्तरालेः । मिश्रीकृतेनपयसा जिनपुङ्गवानां त्रैलोक्यपावनमहं स्नपनं करोमि ।।
(इस श्लोकको पढ़कर केसर कस्तुरी कर्पूरादिसे बनाये हुये सुगंधित भकसे स्नपन करना चाहिये।) इष्टैमनोरथशतैरिव भव्यपुंसां पूर्णः सुवर्णकलशनिखिवतानः । संसारसागरविलंघनहेतुसेतुमालावये त्रिभुवनैकपति मिनेन्द्रम् ॥ __ . (इस लोकको पढ़कर शेष बचे हुये सम्पूर्ण कलशोंसे ममिषेक करना चाहिये।)
१. घृत दुग्ध दधि आदिके मिलानेसे सर्वोषधि होती है तथा करादि सुगन्धंद्रव्योंके मिलानेसे भी साँषधि होती हैं। ' .