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________________ १७०] जैनसिद्धांतसंग्रह। इत्थं श्रीनिनमंगलाष्टकमिदं सौभाग्यसम्यकरम् । कल्याणेषु महोत्सवेषु सुषियस्तार्थकराणां मुखाः ॥ ये श्रृणवन्ति पठति ते च सुजना धर्मार्थकामान्विता । लक्ष्मीराश्रिय ते विपापरहिता कुर्वन्तु ते मंगलम् ॥ ९॥ सम्यग्दर्शनबोधवृत्तममलं रनत्रय पावनं । मुक्तिश्री नगराधिनाथ मिनपत्युक्तोपवगप्रदः ॥ . धर्मः सूक्तिसुधाधि देव महिता चैत्यालयश्चालकः । प्रोकं तत्रिविधं चतुर्षिषममी कुर्वन्तु ते मंगळम् ॥ १० ॥ दिव्योऽष्टौ च जयादिकाः द्विगुणिताः विद्यादिकाः देवताः। । श्री तीर्थकर मातृकाश्च मनकाः यक्षाश्च यक्ष्वास्तथा ॥ द्वात्रिंशनिदशा गृहस्थितिसुराः दिकन्यकाश्चाष्टधा । दिक्पाला दशचेत्यमी पुरगणः कुर्वन्तु ते मंगलम् ॥ ११ ॥ (३५) शील माहात्म्य जिनरानदेव कीनिये मुझ दीनपर करुणा । भविवृन्दको अब दीजिये इस शीलका शरणा ॥ टेक || शीलकी धारामें जो स्नान करें हैं । मलकमको सो धोयके शिवनार वरें हैं । वृतरान सो वेताल व्याल काल डरे हैं । उपसर्ग वर्ग घोर कोट कष्ट रें. हैं ॥१॥ तप दान ध्यान जापनपन जोग आचारा । इस शीलसे सब धमक मुंहका है उनारा | शिवपंथ अन्य मंथके निम्रन्थ : निकारा । विन शील कौन कर सके संसारमें पारा ॥ २ ॥ इस .. शीलसे निर्वाण नगरकी है अवादी । पट शलाका कौन ये ही .
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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