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१६२] जैनसिद्धांतसंग्रह।
सप्तव्यमनका फलजुआ चोरी मांस मद, वेश्या रमण शिकार । पररमारत व्यसन ये, सात सेय दुखकार ॥ . पड़े नरकम नारकी, तांबो प्यावे ताय । मार मारके खड्गसे, करें दुर्दशा आय ॥
पतिको कष्ट देनेका फल- . में नारी अति दुष्ट चित, स्वामीको दुख देय । तीव्रमावतें नरक लहि, बहुतहिं कष्ट सहेय ॥
पतिकी आज्ञा न माननेका फलहितकारी पतिके वचन, करै निरादर जोय ।।
नर्कवास भयभीत लहि. मार घाड़ तहं होय ।। अपनी मौतक बचेको दुःख टेनेका फलदया रहित में नारि हैं, बालक मौत निहार । द्वेष बुद्धिसे न दे प'चे नर्क मंझार ॥ छेदन भेदन दुख . तहं पावत दिन रैन । जो परको दुख देत है. कैसे पावै चैन । माता पिताकी आज्ञा भंग करनेका फल
जगमें हितकारी बड़े, मात पिताके चैन । करें निरादर दुष्ट सुत, पावें नर्क अचैन ।
माता पिताके द्रोहका फलमात पिताने मोहवश, पाले पोषे पूत । ते नारिन कश परे, दुखदाई भये ऊत ।। तिनकी छाती लात दे, भाला मारे शूर । मात पिताके द्रोहा, पावें दुःख भरपूर ॥