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________________ जैनसिद्धांत संग्रह | कामचेष्टा करनेका फैल कीन्ह बहुत घिनावनैः कामरूप अविचार । :: तिनकी देखो वेदना; नरकनिकी - भयकार | कामातृष्णाका फल --- निशदिन काम कथा करें, घरै चित्त अंतिकाम !न्याय अन्याय गिने नहीं, पड़े नरकके धाम ॥ रज्जुपाशते. बांधिके, अग्नि चिताने डारि । सहते पीर घिनावनी, जलत अंग दुखकारि ॥ व्यभिचारिणी स्त्रीका फल 1 [ • मोहित है पर पुरुष संग, कीनो जो व्यभिचार । ar नारीकी दशाको देखो सुजन बिचार ॥ अग्नि शिखा विच डारिके, छेदत अंग उपङ्ग 1 देत दुःख नहिं कह सकत, ऐसे करत कुढङ्ग ॥ अनंगक्रीड़ा करनेका फल - पुत्र जननके कारणे प्रगट कामके अंग । तिन्हें छोड़ काम घजन, राचें और कुअंग ॥ महां पापसे नर्क जा होते नित्य अधीर । अंग छेद पीड़ा अधिक, सहते विक्रिय शरीर ॥ अति आरम्भका पल होय लोलुपी जगतनें, बहु आरम्भ बढ़ाय । हिंसा कीनी ऊपने, ते नरकनिमें नाय ॥ दान अं रायका फ. देत देखके दानको, दुखी हेय जो भूल । नरकनिमें ताकी दशा देखो मुखमं सूल ॥ · १६९,
SR No.010309
Book TitleJain Siddhanta Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalaya Sagar
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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