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जैनसिद्धांतसंग्रहः।। . . [१ m mmmmmmmmmerinamarimmmmmmmmmmmminimimmmmmmm. कहें तत्वविद्याधन धारी। मेरे चितघर माहिं वंसो तेजोमय यावत। पापविमर अवकाश तहां सो क्यों कर पावतः ॥२॥ भानंद आंसू वदन घोय तुम सो चित सानै । गदगद सुर, सों सुयश मंत्र पढ़" पूना ठाने । ताके बहुविधि व्याधन्याल चिरकाल निवासी। भाजै थानक छोड़ देहबांवईके बासी ॥६॥ दिवसे आवनहार भयें। भवि भाग उदयबल । पहले ही सुर आय कनकमय कीन: महीतल ॥ मन गृह धान दुवार आय निवसे जगनामी । जो. सुवर्ण तन करो कौन यह अचरज स्वामी ॥२॥ प्रभु सव नमके.. विना हेतु बंधव उपकारी। निरावर्ण सर्वज्ञ शक्ति मिनराज तिहारी ॥ भक्ति रचित मम चित्त सेन नित बास करोगे । मेरे दुःख सन्ताप देख किम धीर धरोगे ॥ ५ ॥ भववनमें चिरकाल.. भ्रमो कछुकही न जाई । तुम-श्रुति कथा पियूष वापिका भागन पाई ॥ शशितुषार धनसार हार शीतल नहिं जा सम । करत. न्हौन तिस माहिं क्यों न भव ताप बुझे मम ॥६॥ श्रीविहार, परिवार होत शुचिरूप सकल नग। कमल कनक आभास सुरंभि श्रीवास धरत पग । मेरो मन सग परस प्रभुको सुख पावै। अब सों कौन कल्याण जो न दिन दिन ढिग आवे ॥ ७ ॥ भव तन सुखपद बसे काम मद सुमट संघारे । जो तुमको निर्खेत . सदा प्रियदास तिहारे। तुम वचनामृत पान भक्ति अंजुलिसों पी। तिसे भयानक क्रूर रोग रिपु कैसे छीवै ॥ ८ ॥ मानर्थम पाषाण
आन पाषाण पटंतर । ऐसे और अनेक रत्न दीखें जग अन्तर.। देखत दृष्टि प्रमाण मानमद तुरत मिटावै। जो तुम निकट न. . होय शक्ति यह क्यों कर पावै ॥ ९॥ प्रभुतन पर्वत परंस पवनः