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जैनसिद्धांतसंग्रह। मृत्युरानको भय नहिं मानो, देवै तन सुखदाई ॥ . याते. नवलग मृत्यु-न आवे, तबलग जप तप कीजै। ..... जप तप बिन इस जगके माहीं, कोई भी ना सीने ॥ २३॥ स्वर्गः संपदा तपसे पावे, तपसे कर्म नशावे। ... तपहीसे.शिवकामिनिपति है, यासे तप चित लावे ॥ ... अब मैं जानी समता विन मुझ, कोऊ नाहिं सहाई। :: मात पिता सुत बान्धव तिरिया, ये सब हैं दुखदाई ॥ २४॥ मृत्यु समयमें मोह करें ये, तात आरत हो है। औरत ते गति नीची पावे, यो लख मोह तनो है। ::: और परिग्रह जेते जगमें, तिनसे प्रीति न कीजे | : . परमवमें ये संग न चालें, नाहक आरत कीजे ॥ २९॥ . जे जे.वस्तु लसत हैं तुझ. पर, तिनसे नेह निवारो। .. परगतिमें ये साथ न चालें, ऐसो. भाव विचारों |... १... जो परभवमें, संग चलें तुझ, तिनसे प्रीति सुकीने। . . : पंच पाप तन समता पारो, दान चार विध दीने ॥ १६... दशलक्षणमय धर्म, धरो उर, अनुकम्पा चित लावो । ., षोडशकारण नित्य चिन्तवो, हादश भावन भावो ॥. . . . चारों परवी प्रोषध कीजे, , अशन रातको त्यागो।.. समताधर दुर्भाव निवारो, संयमसूं अनुरागो ॥ २७ ॥ :. अन्तसमयमें ये शुभ भावहि, होवें आनि सहाई। ... स्वर्ग मोक्षफल तोहि दिखावें, ऋद्धि देय अधिकाई | .:.,
खोटे भाव सकल -जिय त्यामो, उरमें समता लाके। : . • जासेती गति: चार दूर कर, वसो: मोक्षपुर जाके ।। 361..