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को प्राप्त हो म ओर देश के जनजीवन को एक विचार धारा में चलाने में ममथं ही मक यह त्रिकाल संभव नही।
मी परिस्थिति में एक मात्र उपाय उन विकारी भावों की नीव्रता का नाश करने में ही है और यह तभी संभव है कि जब भोग विलासों के माधन जो नगगे में आज भर दिए गए हैं. उनका नाग हो, क्योंकि आजका दावागी उनकी प्राप्ति के गग को तीव्रता से प्राप्त है। वह अज्ञानी है और हर प्रकार का गग बढना हो जाता है। जब तक माधन अपनी नटक-मटव. द्वारा अज्ञानी दा वामी को उनके ग्रहण करने के प्रलोभनों को बढ़ा रहे तब तक उनकी प्राप्ति की अज्ञानता नष्ट होना दाट गोचर नही।
जन गद्धान्न गे अज्ञानी आत्मा को मिथ्यादष्टि करना है और प्रेमी आत्माओं परिणाम को मिथ्यात्व अथवा मोह कहना है । टमी को जैन मिद्धान्न आत्मा का अमत्य का आचरण कहता है। आत्मा के ज्ञान के आचरण काही जन मिद्धान्न मन्याचरण कहना है मोमा आचरण आज पृथ्वीनर पर कटी भी दष्टिगोनर नहीं है. आत्मा के अज्ञान और ज्ञान के आचरण के भेद को जत्र आत्मा जानने लगता है और ज्ञान में आत्मा के आचरण काही मन्याचरण जान मा आचरण में विश्वास को प्राप्त होता है तब उस ब्रान्मा को सम्बग्दाट जन सिद्धान्त कहता है।
मा आत्मा ही जीवन म विपरीत भोगोपनांग के आचरण का त्यागी होता है ओर मा आत्मा हो म्वय मुग्व व याति को ग्रहण करता है और अन्य को मुग्न यानि दने का मार्ग देने में कारण बनता है माई आज मामन मिथ्यात्व की भीषणता को प्राप्त है वह नो विगाल मात्रा में लगे सरकारी-करण में रत कर्मचारियों के भौगोपभोग के माधना का तृष्टि. करण करने में असमर्थ है. फिर प्रजावर्ग में उमी भौगोपभोग का तृष्टिकरण करने में किस प्रकार ममर्थ होगा यह दृष्टिगोचर नहीं । ___अज्ञानी प्रजा वर्ग नो अज्ञानो है ही किन्त मार्ग दर्शक गामन-गामक वर्ग जब भीषणता में मरमागकणों व कगें हाग गरीव अज्ञानी प्रजा वर्ग को चमना हो जाय तो द ख अगान्ति बढ़ती ही जायगी।
हे देश के मानवों ज्ञान-अज्ञान का भेद जानी और ज्ञान में श्रद्धा को प्राप्त हो उमी म आचरण कगे यही मात्र मुख पाति का उपाय है. अन्य नही। तिलोग्राम-मागर ... Saint H2 १०-८-७३
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1-मागर
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