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चैन सिद्धान्त में यह चर्चा इस प्रकार है
"क्योंकि ज्ञानमय भाव में से ज्ञानमय ही भाव उत्पन्न होता है इसलिए शानियों के समस्त भाव वास्तव में ज्ञानमय ही होते हैं। और क्योंकि बहानमय भाव में से अज्ञानमय ही उत्पन्न होता है, इसलिए अशानियों के भाव अज्ञानमय ही होते हैं।" _ "जैसे स्वर्णमय भाव में से स्वर्णमय कुंडल इत्यादि भाव होते हैं और लोहमय भाव में मे लोहमय कडा होते हैं, उसी प्रकार अज्ञानियों के अनेक प्रकार के अज्ञानमय भाव होते हैं, और ज्ञानियों के सभी ज्ञानमय भाव होते हैं।"
तिलीग्राम-सागर २८-२-१९७३
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