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जैन सिद्धान्त दीपिका
३. गण और पर्यायों के आश्रय को द्रव्य कहते है।
१. गति में महामक होने वाले दव्य को प्रसवहते है।
गनिकिया गृपमानिमम म्पन्दन तक में प्रवन होने वाले जीव और गली को गति म उदामीन भाव में अनन्य महायक होने वाले द्वन्म का नाम भीमकाय है. जमेमछलियों की गति में जल महाया होता है।
धाग्निकाय जीव और पद गली का गाने में प्रवन नी करना, निा व उदामीन महायक होता है।
उसके बिना जीव और गुदगल गान नहीं कर गकन, लिए वह अनन्य मागक होता है ।
५ स्थिति में गायब होने वाले प्रव्य को अधमं करता। म्थान (गनि-
निन) म वनंमान जीव और परगना की स्थिति में उदामान भाव ग अनन्य महायक हान बाल दव्य की अधर्माग्निकाय कहते हैं, जो पानी को विश्राम करने के लिए वक्ष की छाया महायक होती है।
अधाग्निकाय नीव और पद गला को ग्थिन नहीं करना, लिए व उदासीन महायक होता है।
उसके बिना जीव और पुदगल स्थित नहीं हो मन, गाला वह अनन्य महायक होता है।
धर्माम्निकाय और अधाम्निकाय के बिना जीव और पुद्गल की गति एवं स्थिति नही हो मकनी नथा वाय आदि पदार्थों को गति एवं ािन का महायक मानने में अनवस्था