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अणुव्रत अनुगास्ता प्राचार्य तुलसी
आगम के हिमालय ग आचार्य भित्रने गायिका गगा प्रवाहित की। जयाचायं न उन विस्तार दिया । आनायं कालगणी ने उसके नटबन्ध को मृदद किया। अणुवन अनुगाम्ना आचार्य नलगी उगे जन-जन तक पहुंचा है। आचायधीन माहित्य और माहित्यकार दोनों की गष्टि की। उनकी मजनात्मक शक्तिगे उम योतम्विनीको नया आयाम मिला है। उगी त्रिपथगा के विशद प्रवाह में मिलने वाला एक प्रांत है, प्रस्तुत ग्रन्थ, जो भद मे अभद की दिणा में गतिमान है और जिमका अनुरोध है कि व्यक्तित्व का दीप ममप्टि के दीवट पर स्थित होकर ही विम्बमानम को आलोकिन करे।