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जन सिदान्त दीपिका
मोदारिक-मित्र-योग-कार्मण, बाहारक तथा वैक्रिय के मिश्रण से होने वाला बौदारिक योग ।
करण-क्रिया-कर्म में होने वाली किया।
कायषट्क-पृथ्वीकाय, बकाय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और उसकाय । 'चीयते इति काय:-यह काय शन्द की निरुक्ति है। इसका पारिभाषिक अर्थ है-शरीरावयवी। सादृश्य की अपेक्षा जिसमें प्रदेश-अवयव होते हैं, उसे काय कहा जाता है; जैसे-पृथ्वी शरीरावयवी जीवों का समूह पृथ्वीकाय बादि ।
कार्मण योग-कार्मण शरीर (सूक्ष्म शरीर) के सहारे होने वाला आत्मा का प्रयल।
कुल-एक आचार्य के शिष्यों का समूह ।
कोड़ाकोड़-फोड़ को कोड़ से गुणा करने पर जो संख्या लब्ध हो उसके १० नील वर्ष होते हैं।
कोड़पूर्व-चौरासी लाख को पौरासी लाख से गुणा करने पर जो संख्या लब्ध होती है उसे एक पूर्व कहते हैं । उसके ७०५६०००००००००० वर्ष होते हैं, ऐसे क्रोड पूर्व ।
भयोपशमहेतुक-अयोपशम-आत्मा को उज्ज्वलता से होने
__ गण-कुल का समुदाय-दो माचार्यों के शिष्य समूह।
गण-उत्सर्ग-आचार्य के बादेश से एकाकी विहरण करना ।
गुण-वस्तु के सबसे छोटे अंश को गुण (अविभागी-प्रतिच्छेद) कहते हैं, दव्य का सहभावी धर्म। - गति-नरक, तियंञ्च, मनुष्य और देवगति का अर्थ है-नरक मादि पर्यायों की प्राप्ति।
घनोदधि-बर्फ की तरह गाढ़े पानी का समुद्र ।