________________
१८८
जैन सिद्धान्त दीपिका
गोत्र १. उच्चगोत्र
२. नीचगोत्र अन्तराय १. दानान्तराय
४. उपभोगान्तराय २. लाभान्तराय
५. वीर्यान्तराय ३. भोगान्तराय ७. सिद्ध के पन्द्रह प्रकार...५/२२
१. तीर्थसिद्ध-अरहन्त के द्वारा तीर्य की स्थापना होने
के पश्चात् मुक्त होने वाले। २. अतीर्थसिद्ध--तीर्थ-स्थापना से पहले मुक्त होने वाले। ३. तीर्थङ्करसिद्ध तीर्थङ्कर होकर मुक्त होने वाले। ४. अतीर्थङ्करसिद्ध--तीर्थङ्कर के अतिरिक्त अन्य मुक्त
होने वाले। ५. स्वलिंगसिद्ध जैन साधुनों के वेश में मुक्त होने
वाले । ६. अन्यलिंगसिद्ध-अन्य साधुओं के वेश में मुक्त होने
वाले। ७. गृहलिंगसिद्ध-गृहस्थ के वेश में मुक्त होने वाले । ८. स्त्रीलिंगसिद्ध-स्त्री दशा में मुक्त होने वाले। ६. पुरुषलिगसिद्ध-पुरुष दशा में मुक्त होने वाले । १०. नपुंसकलिंगसिद्ध-कृतनपुंसकदशा में मुक्त होने
वाले। ११. प्रत्येकबुद्धसिद्ध-किसी एक निमित्त से दीक्षित होकर
मुक्त होने वाले।