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जैन सिद्धान्त दीपिका
एक गंमा बनता है। इन सबका खेदन क्रमशः होता है । तन्तु के पहले गए के छेदन में जितना समय लगता है, उसका अत्यन्त मूक्ष्म
अश यानी अमख्यानवा भाग समय कहलाता है। २. श्रुत ज्ञान के चौदह भेद... १५
१. अमग्थुत-अक्षरो द्वारा कहने योग्य भाव की
प्ररूपणा करना। २. अनमग्थुन-मुह, भों, अगुली आदि के विकार या
मकेत से भाव जताना। इन दोनो मे साधन को साध्य माना गया है। अक्षर और अनार दोनो श्रुतगान के साधन है। इनके द्वारा श्रोता, पाठक और द्रष्टा; वक्ता, लेखक और संकेतक के भावों को जानता है।
३. समिथुन-मनवाले प्राणी का श्रुत। ४. संक्षित-विना मनवाने प्राणी का श्रुत। वे दोनों भेदभान के अधिकारी के मेद से किए गए हैं। १. सम्पमत-सम्यग्दृष्टि का भुत, मोग-साधना में
.. निजात मियादृष्टिका बुन, मोग-साधना में
Minारकी सेवा है।