SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक कोटि द्रव्य दान का विचित्र परिणाम सबोधित कका कारण या वारे वायक जी देख सकता में इसरी शैय्या मदनवेगा अपने पति वमुदेव से रूठ कर अन्तर्गृह मे दूसरी शैय्या पर जा सोई । न वह वहाँ से वसुदेव को देख सकती थी और न वसुदेव उसे । वीच मे कई दीवारे वाधक जो थी। रूठने का कारण था वसुदेव का मदनवेगा को वेगवती कह कर सबोधित करना । स्त्री नहीं चाहती कि उसका पति सपत्नी का नाम भी ले। वसुदेव को भी मदनवेगा के रूठने से दुख तो हुआ पर अव हो भी क्या सकता था ? जवान से निकली वात और कमान से निकला वाण वापिस तो आ नहीं सकता। वे भी खेदखिन्न होकर अपनी गैय्या पर पड़े रहे। इधर पत्नी रूठी हुई, उधर पति खेदखिन्न । लाभ उठाया त्रिशिखर राजा को पत्नी मूर्पणखा ने । विद्याधरी ने अपने पति की मृत्यु का बदला लेने का अच्छा अवसर देखा। मदनवेगा का रूप बनाया और वसुदेव के पास आ गई । मीठे और खुशामद भरे वचनो से बमुदेव को मोहित कर लिया। विद्याधरी वसुदेव को लेकर आकाश में उड गई। बड़े प्रसन्न थे कुमार कि प्रिया मान गई । किन्तु वे ठगे जा रहे थे और विद्याधरी उग रही थी। ___जिस स्थान पर वसुदेव की शैय्या थी उसे विद्याबल से जलाकर सूर्पणखा ने राख की ढेरी बना दिया।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy