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जन कयामाला भाग १
हॅसते, मुमकराते, खिलखिलाते वसुदेव आकाग में विद्यावरी के साथ चले जा रहे थे—विद्याधरी के अक मे बैठे थे वे । ___अचानक विद्याधरी की मुख मुद्रा रौद्र हुई। एक धक्का लगा
और वसुदेव आकाग से भूमि की ओर रिगने लगे। सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई उनकी । हर्प का स्थान आश्चर्य ने ले लिया। पह। क्षण की आँखो की चमक भय में बदल गई ।
विद्याधरी मूर्पणखा ने तो उनको मारने का पूरा प्रवन्ध कर दिया था। इतनी ऊंचाई से गिर कर कोई बच सकता है क्या? किन्तु 'जाको राखे साइयाँ' उसके बचने का कोई न कोई उपाय निकल ही आता है। वसुदेव भी गिरे तिनको फूस के ढेर पर अक्षत गरी । कही कोई खरोच भी नही, चोट की तो कौन कहे ? पल्ला झाडकर खडे हो गये। मानो आकाग से न गिरे हो वरन् सो कर उठे हो।
चलकर समीप के ग्राम मे आये और पूछा तो ज्ञात हुआ 'पाम ही राजगृही नगरी है और वहाँ का राजा है प्रवल प्रतापी जरासंध ।'
जरासघ । जाना-पहचाना नाम था वसुदेव का । चल दिए नगरी की ओर । राजगृही मे पहुंचे तो वैठ गये पासा' खेलने। पासे के खेल मे एक कोटि (करोड) सुवर्ण द्रव्य जीत गये । इतने धन का क्या करे ? अत याचको को दान दे दिया।
उनके इस विचित्र व्यवहार की सूचना राजपुरुषो (राज्य के कर्मचारी सिपाही आदि) को मिल गई। वे तुरन्त आये और वसुदेव को पकडकर ले चले । वसुदेव ने ऐतराज किया
-भाई । मैने कौन सा अपराध किया है जो मुझे पकड रहे हो ? - तुम्हारा अपराध अक्षम्य है। राजसेवको ने उत्तर दिया।
१ पासा एक प्रकार का जूआ था जो कौडियो से खेला जाता था। इसका
प्रचलन मध्यकाल तक रहा और अव भी कही-कहीं खेला जाता है। विशेपकर राजाओ का यह प्रमुख व्यसन था।
[संपादक