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श्रीकृष्ण-कथा-वसुदेव का वीणा-वादन पहली श्यामा से लडने लगी। वस्तुत अगारक ने अपना रूप श्यामा का सा बना रखा था। वसुदेव ने समझ लिया कि यह सव माया है। उन्होंने अपना मुप्टि का प्रहार कर दिया। वज्रसमान मुष्टिका-आघात से अगारक पीडित हो गया । उसने वसुदेव को वही से छोड दिया।
वसुदेव आकाश से गिरे तो सरोवर मे जा पडे। यह सरोवर चपा नगरी के वाहर या। हस के समान उन्होने तैर कर तालाव पार किया और किनारे पर ही रात विताई। प्रात काल एक ब्राह्मण के साथ नगर मे आ गये।
नगर मे एक विचित्र वात दिखाई पडी उन्हे । जिस युवक को देखो, उसी के हाथ मे वीणा। सभी वीणावादन सीखने में तत्पर । मानो नगरी का नाम चपापुरी न होकर वीणापुरी हो। मार्ग मे एक ब्राह्मण से वसुदेव ने इसका कारण पूछा तो उसने बताया. इस नगर मे सेठ चारुदत्त की कन्या है गन्धर्वसेना। गन्धर्वसेना अति रूपवती और कला निपुण है। वीणावादन मे तो उसका कोई मुकाविला ही नही। उसने प्रतिमा की है कि 'जो मुझे वीणावादन मे जीत लेगा उसी को अपना पति वनाऊँगी।' उसी को प्राप्त करने हेतु ये सव युवक वीणा सीखने मे रत है। ___ ब्राह्मण के मुख से कारण सुनकर वसुदेव के मुख पर मुस्कान की एक रेखा खेल गई । उन्होने पुन पूछा___ये सभी युवक किस श्रेष्ठ गायनाचार्य से शिक्षा प्राप्त कर रहे है ?
मुस्करा पडा ब्राह्मण । वोला
-तुम्हारे भी हृदय मे गधर्वसेना की गध वस गई ? गायनाचार्य सुग्रीव और यशोग्रीव यहाँ के शिक्षाचार्य भी है और उन्ही के समक्ष प्रति मास प्रतियोगिता भी होती है।
-क्या अभी तक कोई विजयी नहीं हो सका, प्रतियोगिता मे ? -हुआ क्यो नही ? श्रेष्ठि-पुत्री गवर्वसेना वाजी जीतती रही है।