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श्रीकृष्ण-कया-वसुदेव का निष्क्रमण
यह गव किसके लिये ले जा रही हो ?
-कुमार । महागनी शिवादेवी की आज्ञा से महाराज समुद्र-- विजय के लिए।
मुस्कराकर कुमार ने कहा-'यह सुगन्धित द्रव्य मेरे काम आयेगा।' और गध का पात्र कुब्जा के हाथ से ले लिया।
कुब्जा अनुनयपूर्ण स्वर मे गध-पात्र मॉगती रही और कमार. हँसते-मुस्कराते उसे खिझाते रहे । तुनक कर कुब्जा वोलो
-ऐसे क्रिया-कलापो के कारण ही तो तुम यहाँ पडे हो । --क्या अभिप्राय ? -~-अभिप्राय स्पष्ट है । आपकी दशा यहाँ बन्दियो की सी है । ----साफ-साफ बताओ मामला क्या है ?
अव कुब्जा' को आभास हुआ कि उसके मुख से एक गूढ रहस्य प्रगट हो गया है।
कुमार वार-बार रहस्य बताने का आग्रह करने लगे और कुब्जा कन्नी काटने लगी। किन्तु कहाँ दासी और कहाँ कुमार, उसे सपूर्ण रहस्य बताना ही पड़ा। ____ कुब्जा के रहस्योद्घाटन ने वसुदेव के हृदय मे हलचल मचा दी। उन्होने गध पात्र तो कुब्जा को लौटा दिया और स्वय विचार निमग्न हो गये । उन्होने नगर छोडने का निश्चय कर लिया।
कुब्जा नामक दामी के स्थान पर उत्तरपुराण में निपुणमती नाम के बहुत बोलने वाले नेवक द्वारा यह रहस्योद्घाटन कराया गया है। निपुणमनी के वचनी की परीक्षा करने के लिए जब वमुदेव बाहर जाने लगे तो द्वारपालो ने यह कह कर उन्हे रोक दिया कि 'आपके वटे भाई ने हम लोगो को यह आजा दी है कि आपको बाहर न जाने दिया जाय,. इमलिए आप वाहर न जाये।' यह सुन कर उस समय तो वसुदेव वही रह गये पर दूसरे ही दिन विद्या सिद्ध करने के बहाने बोडे पर सवार होकर प्रमशान चले गये।
[उत्तरपुराण ७०/२२६-४१]]