________________
जैन कथामाला भाग १ बन जाय, अवश्य ही बन्धन लगाने योग्य है । गजा समुद्रविजय ने प्रजाजनो को आश्वासन दिया___-मै उचित व्यवस्था कर दूंगा । आप लोग इस बात की चर्चा ___ वसुदेव से न करे। ' प्रजाजनो ने आश्वस्त होकर महागज को प्रणाम किया ओर
अपने घरो को लौट गये। उन्हें क्या आवश्यकता श्री कुमार से चर्चा करने की-पेड गिनने से मतलव या आम खाने से ।
राजा समुद्रविजय विचार करने लगे कि कोई ऐसा उपाय हो जिससे सॉप भी मर जाय और लाठी भी न टूटे । प्रजा की शिकायत भी दूर हो जाय और कुमार को भी बुरा न लगे । सोचते-मोचते एक विचार मस्तिष्क मे कौधा और उसे ही क्रियान्वित करने का उन्होने निर्णय कर लिया। - अनुज को अपनी वगल मे बिठाकर स्नेहा स्वर में समुद्रविजय वोले
-दिनभर इधर-उधर बाहर घूमते रहते हो । देखो तो मही देहकाति कैसी क्षीण हो गई है। ___-तो महल मे बैठा-बैठा क्या करूँ ? मन लगता नहीं निठल्ले वैठे और आप कोई काम बताते नही।
-अरे काम को क्या वात ? जो कलाएँ तुमने नहीं सीखी उन्हे सीखो और जो सीख ली है उनका पुन अभ्यास करो। क्योकि कला विना अभ्यास के विस्मृत हो जाती है।
-ठोक है, आज से ऐसा ही करूंगा। ____अग्रज की इच्छानुसार अनुज महल मे रहकर नृत्य, गान, सगीत आदि कलाओ का अभ्यास करके ही मनोविनोद मे अपना समय विताने लगे।
प्रजा की शिकायत भी मिट गई और कुमार को बुरा भी न लगा!
एक दिन कुब्जा नाम की दासी गव लेकर जा रही थी कि कुमार वसुदेव को दिखाई दे गई। कुमार ने उससे पूछा