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________________ जंन कथामाला भाग ३३ सागरचन्द्र ने भी अणुव्रत ग्रहण करके प्रतिमा' धारण कर ली। एक वार वह मशान भूमि मे कायोत्सर्ग मे लीन था। उसी समय उसका विरोधी नभ सेन उधर आ निकला । वह बोला --अरे पाखडी । कमलामेला के अपहरण का फल अव भोग । यह कहकर उसने चिता मे से अगारे लेकर एक ठीकडे मे भरे और उसके सिर पर रख दिए । तीव्र वेदना मे भी यथाशक्ति सागरचन्द्र ने समताभाव रखा और पचपरमेष्ठी का जाप करते हुए प्राण त्यागे। वह मरकर देवलोक मे गया । त्रिषप्टि० ८।१० -उत्तरपुराण ७१।२००-३०० -अन्तकृत, वर्ग ३, अध्ययन ८ १ सागरचन्द्र वलराम का पौत्र और निषध का पुत्र था । २ श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओ का पालन करना । ३ मागरचन्द्र और नभ प्रभ के शत्रुभाव के कारण और कमलामेला के अपहरण के लिए पीछे पढिए इमी पुस्तक मे । विशेष—यहाँ उत्तरपुराण मे देवकी और उसके पुत्रो के पूर्वभवो का विस्तार पूर्वक वर्णन है । सक्षिप्त कथानक इस प्रकार है देवकी ने भगवान अरिप्टनेमि के गणधर वरदत्त से पूछाभगवन् | आज मेरे घर दो-दो करके छह मुनि पारणेहेतु आए । उन्हे देखकर मेरे मन मे वात्सल्य भाव क्यो जाग्रत हुआ ? वरदत्त गणधर देवकी को उसके पूर्वभव बताने लगे इमी जद्वीप के भरतक्षेत्र के मथुरा नगर मे शौर्य देश का स्वामी सूरसेन नाम का राजा रहता था। उसी नगर मे भानुदत्त नाम के सेठ के उसकी स्त्री यमुनादत्ता से मुभानु, भानुकीति, भानुपेण, भानुसूर, सूरदेव, सूरदत्त और सूरसेन सात पुत्र हुए। किसी दिन अभयनदी आचार्य, के पास
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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