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________________ श्रीकृष्ण-कथा-गजसुकुमाल ३०३ माता ने बताया -मुनि अतिमुक्तक ने भविष्यवाणी की थी कि 'मेरे आठ पुत्र होगे' अभी तक सात हुए है।। - वासुदेव सब कुछ समझ गये । बोले', ' -आपका मनोरथ अवश्य पूरा होगा। यह कहकर उन्होने सौधर्म इन्द्र के सेनापति नैगमेपी देव की आराधना की। देव ने प्रकट होकर कहा -तुम्हारी माता के आठवॉ पुत्र होगा किन्तु युवावस्था मे ही दीक्षित हो जायगा। कुछ समय बाद ही देवकी के उदर मे स्वर्ग से च्यवकर कोई महद्धिक देव अवतरित हुआ । गर्भकाल पूरा होते ही उसने पुत्र उत्पन्न किया और प्रेम से लालन-पालन करने लगी। देवकी की इच्छा पूर्ण हो गई। उसने जी भर कर पुत्र को खिलाया और नाम रखा गजसुकुमाल। गजसुकुमाल युवा हुआ तो पिता वसुदेव ने उसका विवाह द्रम राजा की पुत्री प्रभावती से कर दिया। एक दिन श्रीकृष्ण को उसी नगर के सोमशर्मा ब्राह्मण की कन्या दिखाई पड गई । उन्होने उसे गजसुकुमाल के लिये पसन्द कर लिया। यद्यपि कुमार की इच्छा तो नही थी किन्तु अग्रज और माता के आग्रह के समक्ष झुकना पडा ! सोमा का विवाह भी उसके साथ हो गया। उसी समय भगवान अरिष्टनेमि द्वारिका पधारे । गजसुकुमाल भी वदन हेतु गया। देशना सुनकर वह प्रवजित हो गया। माता और भाई का आग्रह भी उसे न रोक सका। प्रभु से आज्ञा लेकर उसी दिन सध्या समय श्मशान मे जाकर मुनि गजसुकुमाल कायोत्सर्ग मे लीन हो गए। सोमिल ब्राह्मण भी वन से समिध, दर्भ, कुश आदि लेकर लौट रहा था। उसने गजसुकुमाल को ध्यानावस्थित देखा तो उसका माथा
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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