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- जैन कथामाला . भाग-३३ भी निर्भय पद्मनाभ की सभा मे पहुँचा और योग्य अभिवादन करके बोला
-राजन् । यह तो मेरी व्यक्तिगत विनय प्रतिपत्ति है । अब मेरे स्वामी का सन्देश सुनिये।
यह कहकर दारुक ने भ्रकुटि चढाई, क्रोध से नेत्र लाल किये और उछल कर पद्मनाभ के सिहासन मे ठोकर मारी । इतने कार्य करने के पश्चात् उच्च स्वर से गर्जता हुआ कहने लगा___-हे मृत्यु की इच्छा करने वाले, दुष्ट और व्यभिचारी! श्री, ह्री
और बुद्धि से रहित पद्मनाभ | आज तू जीवित नही बच सकता । तूने श्रीकृष्ण की बहन द्रौपदी का अपहरण किया है। यदि तू अपने प्राण बचाना ही चाहता है तो द्रौपदी को तुरन्त सम्मान सहित लौटा दे ।
पहले तो दूत के इस अचानक परिवर्तित रूप को देख कर सम्पूर्ण सभा स्तभित रह गई किन्तु इस उद्धत व्यवहार से राजा पद्मनाभ कुपित हो गया। बोला
--मैं द्रौपदी को नहीं दूंगा। -तो स्वय को काल के मुख मे प्रवेश हुआ ही समझो। -कौन पहुँचायेगा मुझे यमलोक ?
-स्वय वासुदेव श्रीकृष्ण पाँचो पाडवो के साथ यहाँ आ गए है। वह तुम्हे यमलोक पहुँचाएँगे।
-अच्छा हुआ, वे स्वय यहाँ आ गए । अब देखना है कौन किसको यमलोक पहुंचाता है ? जाकर कह दो मै स्वय युद्ध के लिए तैयार होकर आ रहा हूँ। -पद्मनाभ ने रक्त नेत्रो से कहा ।।
दूत को उसने पिछले द्वार से निकाल दिया।' दारुक ने समस्त घटनाएँ श्रीकृष्ण से निवेदन कर दी।
१. 'पिछले हार से निकालना' शब्द का अर्थ है बिना आदर सत्कार के
अपमानित करके निकाल देना।