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" जैन कथामाला · भाग ३३ -मुझे स्त्री की कोई इच्छा नही है । -अरिष्टनेमि ने निर्विकार भाव से कह दिया।
-स्त्री की इच्छा नही, या स्त्री के योग्य नही । '--सत्यभामा ने विनोद किया।
-कुछ भी कहो । जव ससार मे रहना नही, उसे छोडना ही है तो विवाह की बात ही क्यो सोचनी १५
- विवाह तो तुम्हे करना ही पडेगा। -कृष्ण ने आकर कहा । --नही भैया । मुझे इस झझट मे मत फँसाइये। -तो क्या हम सभी को दुखी करोगे ? - मुझे प्रबजित तो होना ही है फिर-विवाह से क्या लाभ ?. कृष्ण ने समझाया
—देखो बन्धु । मै तुम्हारी प्रव्रज्या मे विघ्न नही डालना चाहता किन्तु यह अवश्य चाहता हूँ कि कुछ दिन गृहस्थधर्म का पालन करो। आदि जिन ऋषभदेव भी गृहस्थाश्रम को भोग कर ही प्रवजित हुए थे और हमारे वश मे उत्पन्न हुए बीसवे तीर्थकर मुनिसुव्रत ने भी गृहस्थाश्रम भोगा था । गृहस्थाश्रम मुक्ति मे वाधक नही है। १ हरिवश पुराण मे जलक्रीडा से पश्चात् शख फूंकने की घटना का वर्णन
है । उसका कारण इस प्रकार दिया है- जलक्रीडा के पश्चात् अरिष्टनेमि ने अपने गीले वस्त्र निचोडने के लिए जाववती की ओर देखा तो उसने कटाक्षपूर्वक उत्तर दियामैं उन श्रीकृष्ण की पत्नी हूँ जिनका वल-पराक्रम विश्व विख्यात है । क्या आप उनसे अधिक दली है जो मुझसे वस्त्र निचोडने की आशा कर रहे है ? तव अपना बल दिखाने के लिए ही अरिष्टनेमि कृष्ण की आयुधशाला मे गए और पाचजन्य शख फूंका।" - .
__--हरिवंश पुगण ५५/२६-७१ उत्तर पुराण मे जाववती की बजाय सत्यभामा का नाम दिया है। शेष घटना क्रम यही है।
--उत्तर पुराण ७१/१३५-३६