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-तही, नही, । यह गका निराधार है । देखते नही वह सासारिक सुखो से - राज्य से कितना निस्पृह है ?
- चित्तवृत्ति बदलते देर नही लगती । तभी आकाश से देववाणी हुई
- अरिष्टनेमि की चित्तवृत्ति कभी नही वदलेगी । वे तुम्हारे राज्य से क्या, ससार से ही निस्पृह हैं ।
वलराम और कृष्ण आकाश की ओर देखने लगे । देवताओ ने अपना कथन स्पष्ट किया-
--तीर्थकर नमिनाथ ने कहा था कि मेरे बाद होने वाले तीर्थंकर अरिष्टनेमि कुमार अवस्था में ही प्रव्रजित हो जायेगे । इसलिए हे कृष्ण | अपने सिहासन की चिन्ता मत करो ।
देव- वाणी सुनकर कृष्ण सिंहासन के प्रति तो निश्चित हो गए किन्तु भाई के कुमार अवस्था मे ही प्रव्रजित होने की बात सुनकर चिन्ता व्याप्त हो गई । एक चिन्ता छूटी तो दूसरी लगी । अव वे अरिष्टनेमि को ससार की ओर आकृष्ट करने मे प्रवृत्त हुए । उन्होने अपनी रानियो से कहा- अरिष्टनेमि युवावस्था मे भी ससार - सुखो से विरक्त सा है तुम्हे उसे आकृष्ट करना चाहिए ।
पति का सकेत पत्नियाँ समझ गई । वे अरिष्टनेमि के साथ क्रीडा करने लगी । भाँति-भाँति के हाव-भाव और कटाक्षो से उन्हे ससार सुख की ओर प्रेरित करती किन्तु अरिष्टनेमि के हृदय में विकार उत्पन्न ही नही होता ।
एक दिन सभी लोग वसन्त क्रीडा हेतु उद्यान मे गए । अरिष्टनेमि को भी कृष्ण की पत्नियाँ खीच ले गई । सबने उनके साथ जलक्रीडा की । भाभियो की जल-क्रीडा का प्रत्युत्तर उन्होने भी दिया । इस प्रत्युत्तर से उत्साहित होकर सत्यभामा ने कहा
- देवरजी । तुम विवाह क्यो नही कर लेते ?
जाम्बवती ने कहा
--- यादव कुल मे एक तुम्ही हो जो ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे
हो ।
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