SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन कथामाला भाग ३१ मथुरा नरेश भोजवृष्णि के उग्रसेन नाम का एक पराक्रमी पुत्र हुआ। शौर्यपुर अधिपति अधकवृष्णि की रानी सुभद्रा से दा पुत्र हुएसमुद्रविजय, अक्षोभ्य, स्तिमित, सागर, हिमवान, अचल, धरण, पूरण, अभिचन्द्र और वसुदेव । ये दशो दशाह कहलाते थे । कुन्ती और मद्री दो पुत्रियाँ भी हुई । कुन्ती का विवाह हुआ राजा पाडु से और मद्री का राजा दमघोष के साथ। एक वार राजा अधकवृष्णि ने अवधिज्ञानी मुनि सुप्रतिष्ठ ने पूछा -प्रभो | वसुदेव नाम का मेरा दगवॉ पुत्र अति पराक्रमी और रूप सौभाग्य वाला है । उसका क्या कारण है ?. -यह उसके पूर्व जन्म के शुभ कर्मो का फल है, राजन् !-मुनि श्री ने सक्षिप्त-सा उत्तर दिया। किन्तु इस सक्षिप्त उत्तर से अवकवृष्णि की तृप्ति कहाँ होने वाली थी? उसने अजलि वाँधकर पुन विनती की -वह कौन सा शुभ कर्म है, जो उसने किया ? जानने की जिजासा है। मुनिश्री ने देखा कि राजा आसन्न (निकट) भव्य है । इसे वसुदेव का पूर्वभव सुनाना व्यर्थ नही जायेगा, वरन् इसके वैराग्य का निमित्त ही वनेगा। यह दीक्षा ग्रहण कर अपना आत्म-कल्याण करेगा। उन्होने राजा को सवोधित करके कहना प्रारभ किया_____ मगध देश के नदिग्राम मे एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री का नाम था सोमिला और पुत्र का नाम नंदिपेण । नदिषेण के दुर्भाग्य से उसके माता-पिता बाल्यावस्था मे ही मर गये । नदिपेण स्वय ही कुरूप था । उसके वडे-बडे दाँत, वाहर निकला हुआ उदर, चपटी नाक, भोडे नेत्र कुरूपता के साक्षात साक्षी थे। उसकी इस बदसूरती के कारण उमके स्वजनो ने भी उसे त्याग दिया। नदिषेण को शरण प्राप्त हुई अपने मामा के घर । मामा के यहाँ विवाह-वय की सात कन्याएँ थी। मामा ने उसे आश्वासन दिया-'मै अपनी एक कन्या के साथ तुम्हारा विवाह कर दूंगा।'
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy