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उसी समय आकाश से देवो ने पुष्पवृष्टि की और जय-जयकार के बीच घोषणा की-'नवे वासुदेव का उदय हो गया है।'
सभी राजा और सुभट अरिष्टनेमि के चरणो मे जाकर उनसे विनय करने लगे
-हे स्वामिन । हमने आपका विरोध किया। हमे क्षमा कीजिए। । उन सवको लेकर अरिष्टनेमि श्रीकृष्ण के पास आए । कृष्ण पहले तो अपने भाई से मिले और फिर सभी राजाओ को अभय दिया। अरिष्टनेमि के कहने तथा समुद्रविजय की आज्ञा से उन्होने जरासध के अवगेप पुत्रो का स्वागत किया। जरासघ के पुत्र सहदेव को मगध के चतुर्थ भाग का गासक बनाया । समुद्रविजय के पुत्र महानेमि को शौर्यपुर का राज्य दिया । हिरण्यनाभ के पुत्र रुक्मनाभ को कोगल देश का राजा बनाया। उग्रसेन के पुत्र धर को मथुरा का राज्य मिला। ___ गनेन्द्र का मारथि मातलि भी अरिष्टनेमि को नमन कर रथ लेकर चला गया और सभी राजा अपने-अपने नगरो की ओर चल दिए।
दूसरे दिन वसुदेव, प्रद्य म्न और शांव अनेक विद्याधरो पर विजय प्राप्त कर लौट आए । जरासंध और उसके अनुचर पूर्ण रूप से पराजित हो चुके थे।
सहदेव ने अपने पिता जरासंध का अग्नि सस्कार किया और जीवयशा अपने पिता की मृत्यु जानकर अग्नि मे जल मरी।
कृष्ण ने सेनपल्ली ग्राम का नाम आनन्दपुर रखा और तीन खण्ड को विजय करने चल दिए । छह माह मे उनकी विजय पूरी हो गई।
द्वारका लौटने के पश्चात् अर्द्ध चक्रेश्वर के रूप मे उनका अभिपेक वडी धूमधाम से मनाया गया। वासुदेव श्रीकृष्ण की समृद्धि विगाल थी—समुद्रविजय आदि बलवान दशाह, वलदेव आदि पाँच महावीर तो थे ही किन्तु उग्रसेन आदि सोलह हजार राजा, प्रद्युम्न आदि साढे तीन करोड कुमार, शांवादिक साठ हजार दुर्दान्त कुमार, वीरसेन प्रमुख इक्कीस हजार वीर, महासेन आदि महा वलवान सूभट