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(१०) कय वृक्ष के देवता ने उसे दो उड़न-खडा दिये ।
(श्लोक ११७) (११) अर्जुन वृक्ष पर रहने वाले पाँच फण वाले नागपति देव से उमे (१) तपन (२) तापन (३) मोहन (४) विलापन (५) मारण-ये पाँच वाण प्राप्त हुए ।
(श्लोक ११८-११६) (१२) कदम्बकमुखी वापिका के देव से नागपाश की प्राप्ति हुई ।
(श्लोक १२०) यह सब देखकर विद्यु दृष्ट्र आदि पाँच मी भाई बडे दुखी हुए। तव उन्होने पातालमुखी वापिका मे कूदने के लिए प्रद्य म्न से आग्रह किया। प्रद्य म्न ने प्रज्ञप्ति विद्या को अपना रूप बनाकर कदा दिया और स्वय छिप कर देखने लगा । सभी पाँच सौ विद्यावर पुन उसे वावडी में कूदा जान कर पत्थर मारने लगे । क्रोध मे आकर उसने उन सबको नागपाश मे वाँध लिया और उलटा लटकाकर ऊपर से मिला ढक दी। सबने छोटे कुमार ज्योतिप्रभ को नगर मे समाचार देने भेज दिया।
(श्लोक १२१-१२६) तभी नारदजी ने आकर उसको उसका अमली परिचय दिया।
(श्लोक १२८) इसके पश्चात् विद्याधर युद्ध के लिए आता है और प्रद्युम्न उसे सब कुछ बता कर नभी विद्याधर पुत्रो को बधन मुक्त कर देता है। फिर वह उनसे आना लेकर नारद के साथ द्वारका की ओर चल देता है।
पहले वह हस्तिनापुर में कौरवो के यहाँ कौतुक करता है, फिर पाडवो के यहाँ और तव द्वारिका पहुँचता है। (श्लोक १३५-१३८)
इनके पश्चात् उसके द्वारका मे किए गए कौतुको का वर्णन है।
भानुक के लिए द्वारका मे लाई हुई कन्याओ के साथ प्रद्युम्न ने सवकी सम्मति से विवाह किया।
(श्लोक १६९)