SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___२३८ जैन कथामाला भाग ३२ (३) इच्छा पूरी न करने पर कचनमाला ने उसकी शिकायत अपने पति से कर दी और विद्याधर ने विद्य दृष्ट्र आदि अपने पाँच सौ पुत्रो को बुला कर उसे मार डालने की आज्ञा दी। (श्लोक ८४-८६) (४) विद्य दृष्ट्र आदि कुमार उसे वन मे ले गए और एक अग्नि कुण्ड दिखाकर बोले-'जो इममे कूद पडेगा वह सबसे निर्भय गिना जायेगा ।' प्रद्य म्न उस कुण्ड मे कूद गया। वहाँ रहने वाली देवी ने आदरपूर्वक उसे वस्त्र-आभूपण दिए । इस तरह वह वहाँ से निकला । (श्लोक १०२-१०४) (५) दूसरी बार प्रद्य म्न को उन पांच सौ कुमारो ने विजयाद्ध पर्वत के किसी विले मे घुसा दिया। वहाँ भेडे का रूप रखकर उस पर दो पर्वत आये किन्तु प्रद्युम्न ने उन्हे अपनी भुजाओ के बल से रोक दिया। इस पर वहाँ का देवता प्रसन्न हुआ और उसे मकर की आकृति के दो कुण्डल दिए। (श्लोक १०५-१०७) (६) तीसरी वार उसे वराह नामक विल मे घुसा दिया । वहाँ उसने अपने पराक्रम के फलस्वरूप देव से विजयघोष नाम का शख और महाजाल विद्या-ये दो वस्तुएँ प्राप्त की। (श्लोक १०८-११०) (७) काल नाम की गुफा मे महाकाल नाम के राक्षस को पराजित कर वृपभ नाम का रथ और रत्न कवच दो वस्तुएँ प्राप्त की । (श्लोक १११) (८) दो वृक्षो के बीच मे कीलित विद्याधर को छुडा दिया। * उसने सुरेन्द्रजाल, नरेन्द्रजाल और प्रस्तर नाम की तीन विद्याएँ दी। - (श्लोक ११२-१५) (8) सहस्रवक्त्र नाम के नागकुमार भवन मे जाकर उसने शख बजाकर नाग-नागिनी को प्रसन्न किया और उनसे चित्रवर्ण नाम का धनुष, नदक नाम की तलवार और कामरूपिणी अंगूठी पाई। (श्लोक ११६-११७)
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy