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जैन कथामाला
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भाग ३२
और साथ ही सत्यभामा के कटे केश भी दे दिए। दानियाँ जब अपनी स्वामिनी के पास पहुँची तो उनके मुंडे मिरो को देखकर उसने पूछा
यह क्या ? तुम्हारे सिर कैसे मंड गए ?
- जैसी स्वामिनी, वैसी दासियाँ । -दासियों ने उत्तर दिया | अब सत्यभामा ने कुछ पुरुषो को भेजा तो उस माधु ने उन्हें शिखाविहीन करके लौटा दिया ।
सत्यभामा क्रोव मे भर गई । वह श्रीकृष्ण के पास पहुंची और कहने लगी
मध्यस्थ भी थे और जमानती
- स्वामी | आप हमारी गर्त के भी । अव रुक्मिणी के केश मंगाइये |
श्रीकृष्ण ने जो सत्यभामा का यह रूप देखा तो रोकते रोकते भी
उनकी हँसी फूट पडी । उन्होने कहा— - तुम मुण्डित हो तो नई ?
-मेरी हँसी उड़ाना तो छोड़िये । अभी उसके केश मँगाइये |
श्रीकृष्ण ने देखा कि सत्यभामा की आँखें क्रोध से लाल है तो उन्होने उसके साथ बडे भाई बलभद्र को भेज दिया। दूर मे ही देखकर प्रद्युम्न ने अपना रूप कृष्ण का सा बना लिया । बलभद्र तो छोटे भाई को देखकर सकोचवा बाहर ही खड़े रह गए । किन्तु सत्यभामा का कोप और भी बढ गया । वह पाँव पटकती वापिस कृष्ण के पास लौट आई। कुपित स्वर मे बोली
- आप तो मेरी हँसी उडाने पर ही उतर पडे है । इधर मुझे केश लेने भेजा और उबर स्वय ही वहाँ जां जमे । लौटकर आई तो उससे पहले यहाँ आ विराजे ।
कृष्ण ने बलराम की ओर देखा तो उन्होने भी सत्यभामा का ही कथन सत्य बताया । अव श्रीकृष्ण ने सौगन्ध खाकर कहा कि मै वहाँ गया ही नही, तुम लोग विश्वास करो | किन्तु सत्यभामा को उनका विश्वास ही नही हुआ । 'सब तुम्हारा मायाजाल है' कहकर अपने