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________________ २२८ जैन कथामाला भाग ३२ जाने वाली कन्या वैठी थी। उसका हरण किया और नारदजी के पास ला विठाया। राज-पुत्री घबडाने लगी तो नारद ने धैर्य बंधाया –निश्चित रहो, वत्से । यह कृष्ण का ही पुत्र है और मेरे पास तुम्हे किसी प्रकार का भय नहीं है। ___कन्या को नारद के पास छोडकर प्रद्युम्न ने अपने साथ एक मायारचित वानर लिया और उद्यानपालको के पास जाकर कहा -यह वानर बहुत भूखा है; कुछ फल वगैरह दे दो। ----इस उद्यान के फल भानुककुमार के विवाह के लिए सुरक्षित है, इसलिए कुछ मत मॉगो। -उद्यानपालको ने उत्तर दिया। - एक छोटा सा वानर है । खायेगा ही कितना? मुंह मांगा धन ले लो और इसे अपनी भूख बुझा लेने दो। यह कहकर प्रयम्न ने उद्यानपालको को धन देकर प्रसन्न कर लिया। उन्होने वानर को अन्दर चला जाने दिया। मायावी वानर ने उद्यान को फलरहित ही कर डाला। अव प्रद्युम्न के पास एक अश्व था। घास और दाना वेचने वाले दूकानदार से जाकर कहा -मेरे अश्व के लिए दाना-घास दे दो। उसने भी भानुककुमार के विवाह के लिए 'दाना-घास सुरक्षित है, तुम्हे नहीं मिल सकता' कहकर उसे लौटाना चाहा तो वहाँ भी प्रद्युम्न ने धन देकर अपना काम बनाया। एक के बाद एक सभी दूकानो पर दाना-घास खतम हो गया। मायावी अश्व ने दाने-घास से तनिक भी दोस्ती न निभाई । सव सफाचट कर गया। अव प्रद्य म्न ने सभी जलागयो, कुओ, वावड़ियो को विद्याबल से जलरहित कर दिया। नगर मे इस प्रकार का कौतुक करके वह राजमहल की ओर चला । साथ मे अश्व था। उसे क्रीडा कराने लगा। सुन्दर अश्व पर कुमार भानुक की दृष्टि पडी तो ललचा गया । उसने पूछा-- . -कितने मे वेचोगे ? जो मूल्य मांगोगे, वही दूंगा।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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