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पूर्वभव के शत्रु मधु को अब भी न भूला था ओर निरन्तर खोज रहा
था ।
प्रभु ने नारद को सम्बोधित किया
- हे नारद | ज्योती महाशुक्र देवलोक से च्यव कर मधु राजा के जीव ने श्रीकृष्ण की पटरानी रुक्मिणी के गर्भ से जन्म लिया त्योही धूमकेतु उसे खोजता हुआ द्वारका आ पहुँचा । अवसर देखकर उसने रुक्मिणी का रूप बनाया ओर कृष्ण के हाथो मे ले उडा । शिशु को मारने की इच्छा से वह उसे वैतान्यगिरि की टक शिला पर छोड आया । वही से कालसवर विद्यावर शिशु को उठा ले गया । अव वह शिशु उनके भवन में पल रहा है ।
नारद ने प्रभु की बात सुनकर पूछा
- स्वामी । अव वह वालक द्वारका किस प्रकार पहुँचेगा ?
- नारद । अभी तो उसके जाने का योग नही है, सोलह वर्ष की के पश्चात् ही वह द्वारका जा सकेगा ?
-आयु
- इसका कारण ? देवाधिदेव ।
- रुक्मिणी को सोलह वर्ष तक पुत्र वियोग सहना पडेगा ?
इतना कहकर भगवान सीमधर स्वामी मौन हो गए । किन्तु नारद के हृदय की जिज्ञासा शान्त नही हुई । उनके हृदय में उथलपुथल होने लगी । वे इस वियोग का कारण जानने को उत्सुक हो गए ।
-- वसुदेव हिडी, पीठिका - त्रिषष्टि० ८ /६
- उत्तरपुराण ७२/१-६६
• उत्तर पुराण में द्यम्न के पूर्वभवो के बारे में वलभद्र भगवान अरिष्टनेमि के गणधर वरदत्त से पूछते हैं । - ( श्लोक १-२ ) । कथानक वही है केवल कुछ नामो का नगण्य-सा भेद हे ।